जाने और समझें भैरव पूजन के महत्व को
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श्री कुल भैरव पूजन-सनातन संस्कृति में प्रत्येक हिन्दू परिवार में कुल भैरव,कुल देवी व देवता होते है, जिनकी कृपा से परिवार में सुख,शांति,समृद्धि व वंश वृद्धि होती है।
ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार श्री भैरव जी का नाम उच्चारण, मंत्र जाप, स्तोत्र, आरती इत्यादि तत्काल प्रभाव देता है और मनुष्य की दैहिक, देविक,भौतिक एवं आर्थिक समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। कलयुग में हनुमान जी के अतिरिक्त केवल कालभैरव जी की पूजा एवं उपासना का ही तत्काल प्रभाव बताया गया है, इसलिए हमें इनकी उपासना करके इन्हे प्रसन्न रखना चाहिए।
पापियों के विनाश के लिए इस दिन भगवान भोलेनाथ ने रौद्र रूप धारण कर लिया था। शिव के दो रूप हैं, काल भैरव और बटुक भैरव. जहां काल भैरव रौद्र रूप है तो वहीं बटुक भैरव सौम्य रूप है।
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आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक कुल के भैरव का पूजन विशेष रूप से किया जाता है, आषाढी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा व भैरव पूर्णिमा भी कहा जाता है।
भैरव जो भय का नाश करने वाले होते है, जो भगवान शिव के रुद्र अवतार है, विपत्ति,रोग,संकट का नाश करने वाले है ऐसे भैरव का हमें पूजन अवश्य करना चाहिए।
भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक भैरव का अर्थ होता है - भय + रव = भैरव अर्थात् भय से रक्षा करनेवाला।) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। भैरवों की संख्या ५२ है। ये ५२ भैरव भी ८ भागों में विभक्त हैं।भैरव एक हिंदू देवता हैं जिन्हें हिंदुओं द्वारा पूजा जाता है। शैव धर्म में, वह शिव के विनाश से जुड़ा एक उग्र रूप है। त्रिक प्रणाली में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर हिंदू धर्म में, भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है (जैसा कि वह पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी या डंडा रखते हैं) और स्वस्वा का अर्थ है "जिसका वाहन (सवारी) कुत्ता है"।
कोलतार से भी गहरा काला रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले डरावने चोगेनुमा वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड और काले कुत्ते की सवारी - यह है महाभैरव, अर्थात् मृत्यु-भय के भारतीय देवता का बाहरी स्वरूप।
उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं। उनको बलि दी जाती है और जहाँ कहीं यह प्रथा समाप्त हो गयी है वहाँ भी एक साथ बड़ी संख्या में नारियल फोड़ कर इस कृत्य को एक प्रतीक के रूप में सम्पन्न किया जाता है। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है।
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विधि-
मुख्य रूप से दिन निर्धारित कर परिवार के सभी सदस्य सम्मिलित होकर अपने कुल भैरव के स्थान पर जाये,पुरे दिन व्रत रखे,महिलाये विशेष रूप से शुद्ध होकर प्रशाद तैयार करे जिसमे दाल,बाटी,गुड़ का चूरमा,मेथीदाने की सब्जी आदि विशेष होती है।
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पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की भगवान श्री भैरव को तेल सिंदूर का चोला चढ़ा कर मोगरे या गुलाब का इत्र अर्पित करे,गूगल की धुप दे,श्री फल,गुलाब की माला अर्पित कर आरती,मन्त्र पुष्पांजलि अर्पित करे,काले धागे की गोप जनेऊ,पान व लाल ध्वजा चढ़ाये।
पश्चात परिवार के लोग मिल कर भोजन करे।
जिन लोगो को अपने कुल के भैरव का स्थान ज्ञात नहीं है वे अपने क्षेत्र के भैरव का पूजन कर कुल भैरव की आराधना कर सकते है।
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संतान प्राप्ति हेतु भगवान भैरव की पूजन विशेष फलदाई बतलाई गई है,साथ ही वर्तमान में जो महामारी फैली है भगवान भैरव इस विप्पत्ति से सभी की रक्षा करें और इस बीमारी का समूल नाश करें।
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पूजा पाठ और कर्मकांड के क्षेत्र में भी भगवान काल भैरवनाथ एक विशेष स्थान रखते हैं। पूजा करने की आज्ञा, पूजा में की गई त्रुटियां और क्रम टूटने के दोष से मुक्ति भी भैरव जी ही प्रदान करते हैं।
भैरव तंत्र के अनुसार --
" ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्। भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि।"
का उच्चारण पूजा से पहले किया जाता है, जिससे हमें पूजा करने की आज्ञा भैरव जी से प्राप्त होती है।
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प्राचीन ग्रंथों (वेद पुराण आदि ) में भैरव प्राकट्य का वर्णन--
पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।
ऐसा भी कहा जाता है की ,ब्रह्मा जी के पांच मुख हुआ करते थे तथा ब्रह्मा जी पांचवे वेद की भी रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पांचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा।
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इस पूजन विधि से होगी भगवान भैरव की विशेष कृपा —
---भगवान कालभैरव को फूलमाला, नारियल, दही वड़ा, इमरती, पान, मदिरा, गेरुआ सिन्दूर, चांदी वर्क और धूप-दीप अर्पित करें।
---बटुक भैरव पंजर कवच का पाठ करने से शरीर की रक्षा, लक्ष्मी प्राप्ति, योग्य पत्नी, ग्रह बाधा, शत्रुनाश और सर्वत्र विजय प्राप्त होती है।
---भैरव जी के 108 नाम माला का जाप करने से मनोकामना पूरी होती है। किसी भी प्रकार का अनिष्ट होने की सम्भावना हो या भयंकर आर्थिक समस्या, इन नाम का पाठ करने से और हवन करने से कष्ट दिन प्रतिदिन दूर जाता है।
---श्री बटुक भैरव आपदुद्धारक मंत्र ( ॐ ह्रीं बं बटुकाय मम आपत्ति उद्धारणाय। कुरु कुरु बटुकाय बं ह्रीं ॐ फट स्वाहा) के जाप से शनि की साढ़े साती, ढैय्या, अष्टम शनि और अन्य ग्रहों के अरिष्ट का नाश होता है और शनिदेव अनुकूल होते हैं।
---नित्य भैरव चालीसा के पाठ से बड़े से बड़ा कष्ट भी समाप्त हो जाता है। कोर्ट-कचहरी के मामलों से भी मुक्ति मिलती है और प्रेत बाधा की भी मुक्ति मिलती है।
---श्री कालभैरव अष्टकम् का पाठ करने से ज्ञान, पुण्य, सद्मार्ग, ग्रह बाधा से मुक्ति, पर्याप्त लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
---श्री शिव दारिद्रयदहन स्तोत्र का पाठ करने से दरिद्रता का नाश होता है और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
---श्री भैरव यंत्र की पूजा एवं स्थापना से घर के कष्ट-क्लेश समाप्त होते हैं एवं भूत/प्रेत बाधा भी शांत होती है।
---काले श्वान/कुत्ते को दूध पिलाने से और भोजन कराने से योग्य संतान प्राप्त होती है और संतान से जुड़ी समस्याओं का अंत होता है। ऐसा करने से केतु की भी शांति होती है।
---इस दिन भगवान भैरव जी के प्रमुख मंदिर जैसे कि काशी, हरिद्वार, उज्जैन और दिल्ली में दर्शन करने से मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।
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