अंतिम दर्शन के पल पल के चित्र देखते रहिए विद्यानंद जी महाराज जीके अंतिम क्षण


 


कई मुनिराज एवं हजारों भक्त के साथ


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महामुनि श्वेतपिच्छाचार्य १०८ श्री विद्यानंदजी महाराज का परिचय:


इस सदी की यह अविश्वसनीय बात है कि हम  95   वर्षीय संत का गुणानुवाद  कर रहे है


श्री सुरेंद्र से पूज्य क्षुल्लक श्री पाश्व कीर्ति जी सन 1925 से वर्ष 1946 तक


क्षुल्लक पद से मुनि श्री विद्यानंदजी  सन 1946 से सन 1963


आचार्य श्री विद्यानंदजी सन 1987 से सन 2019


श्रमण जीवन सन 1946 से सन 2019 तक वर्तमान में सर्वाधिक साधु जीवन


22 अप्रैल   सन 1925  को शेडवाल  कर्नाटक  में  श्री सुरेंद्रजी उपाध्ये का जन्म हुआ। आपके पिता श्री कालप्पाजी एवम आपकी माताजी श्रीमती सरस्वतीजी की कोख से जन्म हुआ  आपने लौकिक शिक्षा दानवड में प्राप्त की तरल ग्राम में संगीत का शिक्षण लिया
ग्राम के स्कूल में भाषा समस्या होने से शांति सागर आश्रम में शिक्षण लिया
सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया
शेडवाल में सन 1946 में आचार्य श्री महावीरकीर्तिजी गुरुदेव का चातुर्मास हुआ 
फ़ागुन शुक्ला त्रयोदशी
आपने 15  अप्रैल  1946  को तम दडडी  कर्नाटक  में आचार्य श्री महावीरकीर्तिजी  से   क्षुल्लक  दीक्षा  ली  नाम करण 
क्षुल्लक श्री पार्श्वकीर्तिवर्णी रखा गया। 
कण्णूर में वर्ष 1947 के चातुर्मास बाद आचार्य श्री  महावीरकीर्तिजी ने क्षुल्लकश्री  को श्री शांतिसागर आश्रम छात्रावास का अधिष्ठाता पद सम्हालने का आदेश दिया वर्ष 1948 से 1956 तक 8  वर्ष वहीं रहे।
1957 का चातुर्मास श्री हुमचा जी मे किया 1958, 1959 सुजानगढ़  तथा अन्य स्थानों पर चातुर्मास कर क्षुल्लकश्री सन 1962 में दिल्ली में आचार्य श्री देशभूषणजी के शरण मे आये।


मुनि दीक्षा।   25 जुलाई 1963  को दिल्ली में आचार्य श्री देशभूषणजी गुरुदेव  के  कर कमलों 
से हुई।  नाम मुनि श्री विद्यानंदजी 
रखा गया। सन 1969 में हिमालय की और विहार किया।     एक चातुर्मास  श्रीनगर, उत्तराखंड में किया। 
वर्ष 1971  का चातुर्मास इंदौर  में किया।
श्री  महावीरजी, मेरठ होते हुए सन 1974 में दिल्ली पुनः पधारे|


उपाध्याय पद:   दिल्ली में आचार्य श्री देश भूषण जी ने दिल्ली  में दिनांक  8 दिसम्बर 1974  को  उपाध्याय पद दिया।
ऐलाचार्य पद:   दिनांक  17 दिसम्बर 1978  को दिल्ली में ऐलाचार्य  पद दिया गया।
वर्ष 1979 का चातुर्मास पुनः इंदौर में हुआ।
20 जुलाई 1980 को श्री श्रवण बेलगोला प्रवेश किया।
आचार्य पद:  आचार्य श्री देशभूषणजी महाराज  के आदेशानुसार संघ ने दिल्ली में  28  जून  1987   को आचार्य पद दिया गया।
आचार्य श्री विद्यानंदजी ने सन 1981  में  श्री बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक  में ऐलाचार्य रहते हुए सानिध्य दिया।


मध्यप्रदेश की इंदौर नगरी में श्री गोम्मट गिरी आपकी प्रेरणा से बनी है। पदम् श्री बाबूलाल पाटोदी को  आचार्य श्री का विशेष आशीर्वाद रहा आचार्य श्री का भव्य चातुर्मास बा पाटोदी ने इन्दोर की धरा पर कराया । गोमट गिरी , बावन गजा , श्रवण बेलगोला के भव्य राष्ट्रीय आयोजन आचार्य श्री के आशीर्वाद व प्रेरणा से बा पाटोदी के नेतृत्व में भव्यता के साथ सम्पन्न हुए । जिनकी स्मृतियां आज भी समाज जनों के मन मस्तिष्क पर अंकित है । वर्ष  1968 से पदम् श्री पाटोदी आचार्य श्री से जुड़े ओर उनकी प्रेरणा से अनेको धार्मिक आयोजन सम्पन्न किये । 


आचार्य श्री  विद्यानंदजी ने श्री बद्रीनाथ जी के दर्शन किये हैं, आपकी प्रेरणा और आशीर्वाद से ही अष्टापद बद्रीनाथ में आदि तिर्थंकर रिषभदेव की निर्वाणस्थली स्थापित कर देश के प्राचीनतम चरण वहां स्थापित किए।


वर्ष 1990  में आचार्य श्री शांतिसागरजी की अक्षुण्ण पट्ट परम्परा का पंचम पट्टाधिश  पद आचार्य श्री वर्द्धमान सागरजी को लिखित गुरु आदेश से दिया गया तब आचार्य श्री विद्यानंदजी ने नूतन पिच्छी नए आचार्यश्री को भेज कर अनुमोदना औऱ  आशीर्वाद  दिया।
 24 वे तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी के 2500 वें निर्वाण महोत्सव कार्यक्रम में आचार्य श्री विद्यानंदजी का महत्वपूर्ण योगदान एवम मार्गदर्शन रहा।
*गुरुवर के चरणों मे कोटिशः नमोस्तु। नमोस्तु।। 

 ( सकल दिगम्बर जैन समाज सामाजिक संसद)