.देवाधिदेव छठे तीर्थंकर श्री 1008 पद्मप्रभजी का मोक्ष कल्याणक महोत्सव तिथी: फाल्गुन कृष्णा चतुर्थी,वी. सं. 2546, बुधवार,दि.12 फरवरी,2020-सभी धर्मप्रेमियों को हार्दिक बधाई, ढेरों मंगल शुभ कामनाये  "अहो प्रभु पद्म की मूरति, परम आनंद दाता है।   ध्येय ध्रुवरूप शुध्दातम, सहज अनुभव में आता है।।"      ‎श्री पद्मप्रभ तीर्थंकर भगवान का परिचय


 


देवाधिदेव छठे तीर्थंकर श्री 1008 पद्मप्रभजी का मोक्ष कल्याणक महोत्सव तिथी: फाल्गुन कृष्णा चतुर्थी,वी. सं. 2546, बुधवार,दि.12 फरवरी,2020-सभी धर्मप्रेमियों को हार्दिक बधाई, ढेरों मंगल शुभ कामनाये 


 


"अहो प्रभु पद्म की मूरति, परम आनंद दाता है।
  ध्येय ध्रुवरूप शुध्दातम, सहज अनुभव में आता है।।"
  
  ‎श्री पद्मप्रभ तीर्थंकर भगवान का परिचय
 
 ‎जन्मनगरी:कौशाम्बी(उत्तर प्रदेश) जो गौतम बुध्द की तपोभूमि है। पिता:इक्ष्वाकुवंशी धरण महाराजा,
 ‎माता:रानी सुसीमा, उर्ध्व ग्रैवेयक के प्रीतिंकर विमान से
 ‎अहमिन्द्र का गर्भावतारण, गर्भ तिथि:माघ कृष्ण 6,
 ‎गर्भ नक्षत्र:चित्रा, 
 
 जन्मतिथि:कार्तिक कृष्ण 13,
 जन्म नक्षत्र:चित्रा, वंश:इक्ष्वाकु,
 ‎आयु:30 लाख पूर्व,कुमार काल :7.5 लाख वर्ष पूर्व,
 ‎शरीर की अवगाहना:250 धनुष,शरीर वर्ण:विद्रुम,
 ‎राज्य काल:21.5 लाख 16 पूर्वांग, चिन्ह:पद्म,
 
‎वैराग्य कारण:दरवाजे पर बंधे हाथी की दशा सुनने से
 ‎पूर्व भवों का ज्ञान(जातिस्मरण),दीक्षातिथि:कार्तिक कृ.13,
 दीक्षा नक्षत्र:चित्रा, दीक्षावन:मनोहर, दीक्षावृक्ष:प्रियंगु, दिक्षोपवास:बेला,दीक्षाकाल:अपराह्न,सहदीक्षित:1000, दीक्षा पालकी: निर्वृत्तकारी, दीक्षा स्थान:कौशाम्बी, प्रथम आहार दाता:सोम दत्त, आहार वस्तु:गाय के दूध से बनी खीर आदि  पक्वान्न, प्रथम आहार स्थान: वर्धमान, छद्मस्थकाल:6 मास
 
 ‎केवलज्ञान तिथि:चैत्र शुक्ला 15,
 ‎यक्ष:मातंग, यक्षिणी:अप्रति चक्रेश्वरी, 
 
मोक्ष तिथि:फाल्गुन कृष्ण 4, ‎मोक्ष काल:अपराह्न, 
 ‎मोक्ष नक्षत्र:चित्रा, सहमुक्त:324 मुनि, ‎योगनिवृत्ति: 1 मास पूर्व, मोक्ष स्थान:सम्मेद शिखर।


 


तीर्थंकर श्रीपद्मप्रभजी की निर्वाण प्राप्ति और निर्वाण कल्याणक


श्री पद्मप्रभजी ने समवशरण रूपी लक्ष्मी का परित्याग किया। वे कायोत्सर्ग/पद्मासन में आरूढ़ हुये।


आयु का अन्तर्मुहूर्त अवशिष्ट रहनेपर श्री पद्मप्रभ तीसरे शुक्ल ध्यान में आरूढ़ हुये।


श्री पद्मप्रभ के शुक्ल ध्यान से योगनिरोध की सहज, निष्प्रयास प्रक्रिया हुई।


चतुर्थ शुक्ल ध्यान में चार अघातिया कर्मों का क्षय हो कर श्री पद्मप्रभजी को मोक्ष प्राप्ति हुई।


भगवान श्री पद्मप्रभ की निर्वाणोलब्धि जानकर समस्त देव-इन्द्रों का अपने परिवारसहित निर्वाण भूमि में आगमन हुआ।उन्होंने तीर्थंकर श्री पद्मप्रभ जी के परम पवित्र शरीर को रत्नमयी पालकी पर विराजमान कर नमस्कार किया।


अग्निकुमार जाति के भवनवासी देवोंद्वारा अपने मुकुट से उत्पन्न अग्नि के द्वारा तीर्थंकर श्री पद्मप्रभ जी  के शरीरका अंतिम संस्कारहुआ।तीर्थंकर के शरीर के भस्म को अपने-अपने मस्तकपर सभी देवों ने  लगाया। इन्द्रोंद्वारा आनंद नाटक, पूजा आदि कार्यक्रम संपन्न हुये।


तीर्थंकर श्री पद्मप्रभ भगवान लोक के अग्रभाग पर जाकर विराजमान हो गये। वे नित्य, निरंजन, कृतकत्य सिद्ध हो गये । चतुर्गति के दुःखों से छूटकर मोक्ष पद पा कर उन्होंने शाश्वत सुख को प्राप्त कर लिया।


 


 


 ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः



 ‎श्री पद्मप्रभ भगवान के चरणों में कोटी कोटी प्रणाम


श्री पद्मप्रभ भगवान के मोक्ष कल्याणक की जय जय जय

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